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शेर
मंज़िल-ए-मर्ग के आ पहुँचे हैं नज़दीक अब तो
कर मदद ऐ नफ़स-ए-बाज़-पसीं थोड़ी सी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जब चाहे तू जला दे मिरे मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ
किस दिन कहा मैं ऐ नफ़स-ए-आतिशीं नहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
उस के दहान-ए-तंग में जा-ए-सुख़न नहीं
हम गुफ़्तुगू करें भी तो क्या गुफ़्तुगू करें
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ग़ज़ब है रूह से इस जामा-ए-तन का जुदा होना
लिबास-ए-तंग है उतरेगा आख़िर धज्जियाँ हो कर
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता
जो टुक दम मार सकते हम तो कुछ फ़िक्र-ए-सुख़न करते
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
शेर
ऐ दिल तमाम नफ़अ' है सौदा-ए-इश्क़ में
इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
शेर
असीर कर के हमें हुक्म दे गया सय्याद
क़फ़स हो तंग तो उन के न बाल-ओ-पर रखना