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शेर
इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़अ है हम को क्या समझाते हो
हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया
जाँ निसार अख़्तर
शेर
ऐ दिल तमाम नफ़अ' है सौदा-ए-इश्क़ में
इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
शेर
ग़ैर से नफ़अत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
शेर
क्या क्या बदन-ए-साफ़ नज़र आते हैं हम को
क्या क्या शिकम ओ नाफ़ नज़र आते हैं हम को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत इन हसीनों से मैं क्या रक्खूँ
जहाँ तक देखता हूँ नफ़अ उन का है ज़रर अपना
अकबर इलाहाबादी
शेर
तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची
हुई न चश्मा-ए-हैवाँ से फ़ैज़-याब घटा
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
मैं लोहे की नाफ़ से पैदा जो कस्तूरी करता हूँ
तनवीर सिप्रा
शेर
आशिक़ों को नफ़अ कब है इंक़िलाब-ए-दहर से
हम वही बंदे रहेंगे बुत ख़ुदा हो जाएँगे
लाला माधव राम जौहर
शेर
जो मुझ आतिश-नफ़स ने मुँह लगाया उस को ऐ साक़ी
अभी होने लगेंगे आबले महसूस शीशे में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ख़याल-ए-नाफ़ में ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध दीं मेरी
शनावर किस तरह गिर्दाब से बे-दस्त-ओ-पा निकले