aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "najis"
किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझेकिस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है
न सैर-ए-बाग़ न मिलना न मीठी बातें हैंये दिन बहार के ऐ जान मुफ़्त जाते हैं
मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकतीरौशनी ख़ाक में तहलील नहीं हो सकती
उस के रुख़्सार देख जीता हूँआरज़ी मेरी ज़िंदगानी है
ज़मीं पे पाँव ज़रा एहतियात से धरनाउखड़ गए तो क़दम फिर कहाँ सँभलते हैं
ज़ुल्फ़ क्यूँ खोलते हो दिन को सनममुख दिखाया है तो न रात करो
ज़िंदगी भर की कमाई ये तअल्लुक़ ही तो हैकुछ बचे या न बचे इस को बचा रखते हैं
वही रिश्ते वही नाते वही ग़मबदन से रूह तक उकता गई थी
इक तिरी याद गले ऐसे पड़ी है कि 'नजीब'आज का काम भी हम कल पे उठा रखते हैं
फिर यूँ हुआ कि मुझ पे ही दीवार गिर पड़ीलेकिन न खुल सका पस-ए-दीवार कौन है
आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगाएक दिन रात ढले यौम-ए-हिसाब आएगा
'नजीब' इक वहम था दो चार दिन का साथ है लेकिनतिरे ग़म से तो सारी उम्र का रिश्ता निकल आया
मिरी ज़मीं मुझे आग़ोश में समेट भी लेन आसमाँ का रहूँ मैं न आसमाँ मेरा
सुना है फूल झड़े थे जहाँ तिरे लब सेवहाँ बहार उतरती है रोज़ शाम के साथ
अब मैं हूँ मिरी जागती रातें हैं ख़ुदा हैया टूटते पत्तों के बिखरने की सदा है
हम तो समझे थे कि चारों दर मुक़फ़्फ़ल हो चुकेक्या ख़बर थी एक दरवाज़ा खुला रह जाएगा
तिरे ख़याल से रौशन है सर-ज़मीन-ए-सुख़नकि जैसे ज़ीनत-ए-शब हो मह-ए-तमाम के साथ
इक सितम ढाने में फ़र्द एक सितम सहने मेंअल-ग़रज़ है न तुम्हारा न मिरा दिल नाक़िस
मिरी नुमूद किसी जिस्म की तलाश में हैमैं रौशनी हूँ अंधेरों में चल रहा हूँ अभी
बुलंद आवाज़ से घड़ियाल कहता है कि ऐ ग़ाफ़िलकटी ये भी घड़ी तुझ उम्र से और तू नहीं चेता
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