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शेर
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
अल्लामा इक़बाल
शेर
फूल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर
मर्द-ए-नादाँ पर कलाम-ए-नर्म-ओ-नाज़ुक बे-असर
अल्लामा इक़बाल
शेर
क्या अजब कार-ए-तहय्युर है सुपुर्द-ए-नार-ए-इश्क़
घर में जो था बच गया और जो नहीं था जल गया
सलीम कौसर
शेर
नाख़ुदा मौजों की इस नर्म-ख़िरामी पे न जा
यही मौजें तो बदल जाती हैं तूफ़ानों में
सय्यद नवाब अफ़सर लखनवी
शेर
सुन तो लिया किसी नार की ख़ातिर काटा कोह निकाली नहर
एक ज़रा से क़िस्से को अब देते क्यूँ हो तूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
शेर
मोहब्बत चीख़ भी ख़ामोशी भी नग़्मा भी ना'रा भी
ये इक मज़मून है कितने ही उनवानों से वाबस्ता