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शेर
बातें कई ज़बानी मैं ने कही हैं उस से
क्या जानिए कहेगा वाँ जा के नामा-बर क्या
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ
शेर अगर दिल के लहू में डूब कर निकले तो क्या
ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब
शेर
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू
मैं सुर्ख़ हूँ तुम सुर्ख़ ज़मीं सुर्ख़ ज़माँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
नाला पुर-शोर हो और ज़ोरों पे फ़रियाद रहे
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
तुम्हें नहीं हो अगर आज गोश-बर-आवाज़
ये मेरी फ़िक्र ये मेरी नवा है किस के लिए