aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "nigah-e-chashm-e-surma-saa"
ऐ चश्म-ए-यार मौत का पहलू बचा के तूऐसी निगाह डाल कि मैं नीम-जाँ रहूँ
चराग़-ए-का'बा-ओ-दैर एक सा है चश्म-ए-हक़-बीं में'मुहिब' झगड़ा है कोरी के सबब शैख़ ओ बरहमन का
सैलाब-ए-चश्म-ए-तर से ज़माना ख़राब हैशिकवे कहाँ कहाँ हैं मिरे आब-दीदा के
पलट कर अश्क सू-ए-चशम-ए-तर आता नहीं हैये वो भटका मुसाफ़िर है जो घर आता नहीं है
मायूस न हो बे-रुख़ी-ए-चश्म-ए-जहाँ सेशाइस्ता-ए-एहसास कोई काम किए जा
वही क़तरा जो कभी कुंज-ए-सर-ए-चश्म में थाअब जो फैला है तो सैलाब हुआ जाता है
तू और चश्म-ए-लुत्फ़ नई वारदात हैमेरी निगाह ने मुझे धोका दिया न हो
न जाने कब निगह-ए-बाग़बाँ बदल जाएहर आन फूलों को धड़का लगा सा रहता है
लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैंकौन सा सेहर तिरी चश्म-ए-इनायत में नहीं
बिखरी हुई हो ज़ुल्फ़ भी इस चश्म-ए-मस्त परहल्का सा अब्र भी सर-ए-मय-ख़ाना चाहिए
उस की चश्म-ए-नीम-वा से पूछियोवो तिरे मिज़्गाँ-शुमाराँ क्या हुए
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आएहम लोग ज़रा देर से बाज़ार में आए
चश्म-ए-गिर्यां की आबयारी सेदिल के दाग़ों पे फिर बहार आई
चश्म-ए-वहदत से गर कोई देखेबुत-परस्ती भी हक़-परस्ती है
निगाह-ए-लुतफ़-ओ-इनायत से फ़ैज़याब कियामुझे हुज़ूर ने ज़र्रे से आफ़्ताब किया
भूलती हैं कब निगाहें चश्म-ए-जादू-ख़ेज़ कीहम को सामान-ए-फ़रामोशी सब अपना याद है
निगाह-ए-गुल से बुलबुल यूँ गिरी हैगिरे जिस तरह तिनका आशियाँ से
तूफ़ान-ए-नूह लाने से ऐ चश्म फ़ाएदादो अश्क भी बहुत हैं अगर कुछ असर करें
ज़रा चश्म-ए-करम से देख लो तुमसहारा ढूँढता हूँ ज़िंदगी का
निगाह-ए-नाज़ की पहली सी बरहमी भी गईमैं दोस्ती को ही रोता था दुश्मनी भी गई
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