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शेर
'मुसहफ़ी' क्यूँके छुपे उन से मिरा दर्द-ए-निहाँ
यार तो बात के अंदाज़ से पा जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
मिरे दर्द-ए-निहाँ का हाल मोहताज-ए-बयाँ क्यूँ हो
जो लफ़्ज़ों का हो मजमूआ वो मेरी दास्ताँ क्यूँ हो
बेदम शाह वारसी
शेर
ऐ हिना रंग-ए-मोहब्बत तो है मुझ में भी निहाँ
तेरे धोके में कोई पीस न डाले मुझ को
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
आता हूँ मैं ज़माने की आँखों में रात दिन
लेकिन ख़ुद अपनी नज़रों से अब तक निहाँ हूँ मैं
अमीक़ हनफ़ी
शेर
निगाहें कामिलों पर पड़ ही जाती हैं ज़माने की
कहीं छुपता है 'अकबर' फूल पत्तों में निहाँ हो कर
अकबर इलाहाबादी
शेर
ज़िंदगी वक़्त के सफ़्हों में निहाँ है साहब
ये ग़ज़ल सिर्फ़ किताबों में नहीं मिलती है
नफ़स अम्बालवी
शेर
इश्क़ का एजाज़ सज्दों में निहाँ रखता हूँ मैं
नक़्श-ए-पा होती है पेशानी जहाँ रखता हूँ मैं