aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "nipat"
जाता है मिरा जान निपट प्यास लगी हैमंगता हूँ ज़रा शर्बत-ए-दीदार किसी का
कमाँ अबरू निपट शह-ज़ोर हैगाकि शाख़-ए-आश्नाई तोड़ डाली
अज़ीज़ो तुम न कुछ उस को कहो हुआ सो हुआनिपट ही तुंद है ज़ालिम की ख़ू हुआ सो हुआ
हाथों से दिल ओ दीदा के आया हूँ निपट तंगआँखों को रोऊँ या मैं करूँ सरज़निश-ए-दिल
बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ीबादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी
तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूरजल्वा बुतों का देख के नीयत बदल गई
सब की तरह तू ने भी मिरे ऐब निकालेतू ने भी ख़ुदाया मिरी निय्यत नहीं देखी
सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती हैचलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें
निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहींतू भी दिल से उतर न जाए कहीं
इंसान की निय्यत का भरोसा नहीं कोईमिलते हो तो इस बात को इम्कान में रखना
पीने से कर चुका था मैं तौबा मगर 'जलील'बादल का रंग देख के नीयत बदल गई
रिंद-ए-ख़राब-नोश की बे-अदबी तो देखिएनिय्यत-ए-मय-कशी न की हाथ में जाम ले लिया
अभी तो चाक पे जारी है रक़्स मिट्टी काअभी कुम्हार की निय्यत बदल भी सकती है
हज्व ने तो तिरा ऐ शैख़ भरम खोल दियातू तो मस्जिद में है निय्यत तिरी मय-ख़ाने में
तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहींरहमत का इरादा बिगड़ा है बरसात की निय्यत ठीक नहीं
बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरीमिरे गुनाह भी कार-ए-सवाब में लिखना
रमज़ाँ में तू न जा रू-ब-रू उन के 'माइल'क़ब्ल-ए-इफ़्तार बदल जाएगी निय्यत तेरी
आई वो रफ़्ता रफ़्ता तक़द्दुस की राह तकफिर यूँ हुआ कि निय्यत-ए-नासेह बिगड़ गई
साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ थी पानी की तरह निय्यत-ए-दिलदेखने वालों ने देखा इसे गदला कर के
ऐ बुत ये है नमाज़ कि है घात क़त्ल कीनिय्यत अदा की है कि इशारे क़ज़ा के हैं
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