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शेर
बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त
अभी तो हुज्जत-ए-बाहम है रहगुज़र के लिए
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
ऐ ज़ाहिदो बातिल से क़सम खाओ जो पहले
तो तुम से कहें हम हक़ ओ बातिल की हक़ीक़त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
उसी दुनिया के कुछ नक़्श-ओ-निगार अशआ'र हैं मेरे
जो पैदा हो रही है हक़्क़-ओ-बातिल के तसादुम से
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
दिल-ए-महज़ूँ बहल सकता नहीं इस नक़्श-ए-बातिल से