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शेर
खावेंगे टाँके ज़ख़्म-ए-सर-ओ-रू पर ऐ तबीब
पर ज़ख़्म-ए-दिल तो हम से सिलाया न जाएगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
शेर
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
क्या ख़ाक लिखा उम्र की ता'मीर का नक़्शा
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
जो शैख़ है चाहे है सर-ए-रिश्ता-ए-इस्लाम
क़ाएम रहे तस्बीह का इक तार न टूटे
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
हल्क़ा-ए-दिल से न निकलो कि सर-ए-कूचा-ए-ख़ाक
ऐश जितने हैं इसी कुंज-ए-कम-आसार में हैं