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शेर
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
चाँद जैसे ऐ 'क़मर' तारों भरी महफ़िल में है
क़मर जलालवी
शेर
मुद्दतों बाद जो इस राह से गुज़रा हूँ 'क़मर'
अहद-ए-रफ़्ता को बहुत याद किया है मैं ने
क़मर मुरादाबादी
शेर
क़मर जलालवी
शेर
'क़मर' अफ़्शाँ चुनी है रुख़ पे उस ने इस सलीक़े से
सितारे आसमाँ से देखने को आए जाते हैं
क़मर जलालवी
शेर
'क़मर' अपने दाग़-ए-दिल की वो कहानी मैं ने छेड़ी
कि सुना किए सितारे मिरा रात भर फ़साना
क़मर जलालवी
शेर
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
बुतों में नूर-ए-ज़ात-ए-किब्रिया मालूम होता है
मुझे कुछ दिन से हर पत्थर ख़ुदा मालूम होता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
तू अपने पाँव की मेहंदी छुड़ा के दे ऐ महर
फ़लक को चाहिए ग़ाज़ा रुख़-ए-क़मर के लिए