aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "pa.Dhaate"
वो चेहरा किताबी रहा सामनेबड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताबपढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
मुझे पढ़ता कोई तो कैसे पढ़तामिरे चेहरे पे तुम लिक्खे हुए थे
शहर में आ कर पढ़ने वाले भूल गएकिस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था
मैं ने कहा कि देख ये मैं ये हवा ये रातउस ने कहा कि मेरी पढ़ाई का वक़्त है
ज़िंदगी कम पढ़े परदेसी का ख़त है 'इबरत'ये किसी तरह पढ़ा जाए न समझा जाए
आदमिय्यत और शय है इल्म है कुछ और शयकितना तोते को पढ़ाया पर वो हैवाँ ही रहा
जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैंमैं ने चेहरे पे तिरे यूँ तो लिखा कुछ भी नहीं
रहता था सामने तिरा चेहरा खुला हुआपढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में
पूजता हूँ कभी बुत को कभी पढ़ता हूँ नमाज़मेरा मज़हब कोई हिन्दू न मुसलमाँ समझा
जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिनज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ
उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँजैसे कल इम्तिहान हो मेरा
हम मोहब्बत का सबक़ भूल गएतेरी आँखों ने पढ़ाया क्या है
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़ेतेरा मे'यार बदलता है निसाबों की तरह
मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहायही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं
सबक़ ऐसा पढ़ा दिया तू नेदिल से सब कुछ भुला दिया तू ने
पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख़्तों को लोगमुद्दत रहेंगी याद ये बातें हमारीयाँ
मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताबनिहायत अक़ीदत से पढ़ता रहा
वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की यादपढ़ते हैं पाँच वक़्त की अब तो नमाज़ हम
तुझ को भी क्यूँ याद रखासोच के अब पछताते हैं
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