aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीतदेंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम
आओ मिल जाओ कि ये वक़्त न पाओगे कभीमैं भी हम-राह ज़माने के बदल जाऊँगा
हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हाजो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हमउलझे हुए हैं आज भी दुनिया ओ दीं से हम
तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जानाकितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैंये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ मेंचाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगेरात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगेआइनों को तोड़ के पछताओगे
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करोअभी अर्ज़ां हूँ कभी पाओगे नायाब मुझे
तितलियाँ उड़ती हैं और उन को पकड़ने वालेसई-ए-नाकाम में अपनों से बिछड़ जाते हैं
वो मेरे लम्स से महताब बन चुका होतामगर मिला भी तो जुगनू पकड़ने वालों को
तड़पेंगे तिरी याद में घबराएँगे तन्हाऐ दोस्त किसी तौर न जी पाएँगे तन्हा
कल यही बच्चे समुंदर को मुक़ाबिल पाएँगेआज तैराते हैं जो काग़ज़ की नन्ही कश्तियाँ
इक उम्र की मेहनत का ये फल पाएँगे हम लोगमिट्टी की रिदा ओढ़ के सो जाएँगे हम लोग
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगेमगर मंज़िल पे जब पहुँचे तो नज़्म-ए-कारवाँ बदला
ये भी तय है कि जो बोएँगे वो काटेंगे यहाँऔर ये भी कि जो खोएँगे वही पाएँगे
देखोगे तो आएगी तुम्हें अपनी जफ़ा यादख़ामोश जिसे पाओगे ख़ामोश न होगा
बहुत क़रीब से कुछ भी न देख पाओगेकि देखने के लिए फ़ासला ज़रूरी है
हम उस की ख़ातिर बचा न पाएँगे उम्र अपनीफ़ुज़ूल-ख़र्ची की हम को आदत सी हो गई है
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