aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "pahlu.o.n"
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ातमाम रात तिरे पहलुओं से आँच आई
आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठेंदिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देनायक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद परतू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भरपलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद
बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू होंकोई पहलू तो रहे बात बदलने के लिए
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरहअटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह
ये वार कर गया है पहलू से कौन मुझ परथा मैं ही दाएँ बाएँ और मैं ही दरमियाँ था
कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गयाजब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया
बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल काजो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला
कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह करअब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा
ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भीमैं भी बर्बाद हो गया तू भी
जब कि पहलू से यार उठता हैदर्द बे-इख़्तियार उठता है
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहींउस परी का सेहर यारो कुछ कहा जाता नहीं
गोया तुम्हारी याद ही मेरा इलाज हैहोता है पहरों ज़िक्र तुम्हारा तबीब से
इसी ख़याल से पलकों पे रुक गए आँसूतिरी निगाह को शायद सुबूत-ए-ग़म न मिले
जो कोई आवे है नज़दीक ही बैठे है तिरेहम कहाँ तक तिरे पहलू से सरकते जावें
पलकों की हद को तोड़ के दामन पे आ गिराइक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया
तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूसकि तुझ से दूर होता जा रहा हूँ
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