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शेर
महफूज़ मोहम्मद
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
अलग बैठे थे फिर भी आँख साक़ी की पड़ी हम पर
अगर है तिश्नगी कामिल तो पैमाने भी आएँगे
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था