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शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
शेर
किस तरह छोड़ूँ यकायक तेरी ज़ुल्फ़ों का ख़याल
एक मुद्दत के ये काले नाग हैं पाले हुए
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
घर के दुखड़े शहर के ग़म और देस बिदेस की चिंताएँ
इन में कुछ आवारा कुत्ते हैं कुछ हम ने पाले हैं
अमीक़ हनफ़ी
शेर
कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले
कुछ लोग हैं हम जैसे कुछ लोग हैं तुम जैसे
ओवेस अहमद दौराँ
शेर
कौन से दुख को पल्ले बाँधें किस ग़म को तहरीर करें
याँ तो दर्द सिवा होता है और भी अर्ज़-ए-हाल के ब'अद
तौसीफ़ तबस्सुम
शेर
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से