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शेर
बहार-ए-हुस्न ये दो दिन की चाँदनी है हुज़ूर
जो बात अब की बरस है वो पार साल नहीं
लाला माधव राम जौहर
शेर
जो कुछ पड़ती है सर पर सब उठाता है मोहब्बत में
जहाँ दिल आ गया फिर आदमी मजबूर होता है
लाला माधव राम जौहर
शेर
पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है
अली सरदार जाफ़री
शेर
हर साल बहार से पहले मैं पानी पर फूल बनाता हूँ
फिर चारों मौसम लिख जाते हैं नाम तुम्हारा आँखों में
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शेर
झुर्रियाँ क्यूँ न पड़ें उम्र-ए-फ़ुज़ूँ में मुँह पर
तन पे जब लाए शिकन पीर-ए-कुहन-साल की खाल