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शेर
इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
अख़्तर शीरानी
शेर
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तेरी क़ुर्बत में ये परदेस से आया हुआ शख़्स
छोड़ कर तुझ को कहीं और भी जा सकता है