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शेर
ख़्वाहिश-ए-दीदार में आँखें भी हैं मेरी रक़ीब
सात पर्दों में छुपा रक्खा है उस के नूर को
इमदाद अली बहर
शेर
छुपे हैं सात पर्दों में ये सब कहने की बातें हैं
उन्हें मेरी निगाहों ने जहाँ ढूँडा वहाँ निकले