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शेर
ख़ुद-कुशी इक आख़िरी कोशिश है ज़िंदा रहने की
ख़ुद-कुशी करने को इक परवाह भी तो चाहिए
प्रियंवदा इल्हान
शेर
हम तो शा'इर हैं हमें वस्ल की परवाह नहीं
हम तुझे अपने ख़यालात में छू लेते हैं
मोहम्मद यासिर मुस्तफ़वी
शेर
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए