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शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ
साहिर लुधियानवी
शेर
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें
मज़हब के झगड़े छोड़ें तो पेशे को क्या करें
अकबर इलाहाबादी
शेर
दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
दो जहाँ की जुस्तुजू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
जोर्ज पेश शोर
शेर
हम ऐसे सूरमा हैं लड़ के जब हालात से पलटे
तो बढ़ के ज़िंदगी ने पेश कीं बैसाखियाँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
पूरी होती हैं तसव्वुर में उमीदें क्या क्या
दिल में सब कुछ है मगर पेश-ए-नज़र कुछ भी नहीं