aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "phase.nge"
हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीतदेंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम हैजिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हाजो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख़्तों को लोगमुद्दत रहेंगी याद ये बातें हमारीयाँ
कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हमउलझे हुए हैं आज भी दुनिया ओ दीं से हम
आख़िर को हँस पड़ेंगे किसी एक बात पररोना तमाम उम्र का बे-कार जाएगा
कभी मिलेंगे जो रास्ते में तो मुँह फिरा कर पलट पड़ेंगेकहीं सुनेंगे जो नाम तेरा तो चुप रहेंगे नज़र झुका के
करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसूफ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ से ऐ नादाँ तौहीन-ए-मोहब्बत होती है
ज़िक्र मेरा आएगा महफ़िल में जब जब दोस्तोरो पड़ेंगे याद कर के यार सब यारी मिरी
तड़पेंगे तिरी याद में घबराएँगे तन्हाऐ दोस्त किसी तौर न जी पाएँगे तन्हा
कल यही बच्चे समुंदर को मुक़ाबिल पाएँगेआज तैराते हैं जो काग़ज़ की नन्ही कश्तियाँ
इक उम्र की मेहनत का ये फल पाएँगे हम लोगमिट्टी की रिदा ओढ़ के सो जाएँगे हम लोग
बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगेमगर मंज़िल पे जब पहुँचे तो नज़्म-ए-कारवाँ बदला
ये भी तय है कि जो बोएँगे वो काटेंगे यहाँऔर ये भी कि जो खोएँगे वही पाएँगे
हम उस की ख़ातिर बचा न पाएँगे उम्र अपनीफ़ुज़ूल-ख़र्ची की हम को आदत सी हो गई है
ख़ून होगा वो अगर ग़ैर के घर जाएँगेहम गला काटेंगे सर फोड़ेंगे मर जाएँगे
अहल-ए-ख़िरद इसे न समझ पाएँगे 'फ़क़ीह'कुछ मसअले हैं मावरा फ़तह ओ शिकस्त से
जुर्म इतने कर चला हूँ हश्र तक लिक्खेंगे रोज़कातिब-ए-आमाल पाएँगे न फ़ुर्सत काम से
ज़ाहिद न कह बुरी ये मस्ताने आदमी हैंतुझ को लिपट पड़ेंगे दीवाने आदमी हैं
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