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शेर
नज़र आती है सारी काएनात-ए-मै-कदा रौशन
ये किस के साग़र-ए-रंगीं से फूटी है किरन साक़ी
एहसान दरबंगावी
शेर
जिसे तुम चाह कर भी पार हरगिज़ कर नहीं पाए
में टूटी-फूटी कश्ती से वो दरिया पार करता था