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शेर
कल बज़्म में सब पर निगह-ए-लुतफ़-ओ-करम थी
इक मेरी तरफ़ तू ने सितमगार न देखा
शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी
शेर
कोई गोशा ख़्वाब का सा ढूँड ही लेते थे हम
शहर अपना शहर 'बानी' बे-अमाँ ऐसा न था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
शेर
राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ओ ज़ाहिर-परस्त
क्या तमाशा दार पर मंसूर ने नट का किया
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
बड़ी मुश्किलों से काटा बड़े कर्ब से गुज़ारा
तिरे ब'अद कोई लम्हा जो मिला कभी ख़ुशी का
एहसान दरबंगावी
शेर
हुस्न की देवी बनी बैठी हैं दिल है बुत-कदा
चंद मुस्लिम लड़कियों ने हम को हिन्दू कर दिया