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शेर
जुनूँ के शाह ने जब से लिया है क़िलअ'-ए-दिल को
ये मुल्क-ए-अक़्ल वीराँ हो गया किस किस ख़राबी से
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
शेर
मुझ से जो मेरी ज़ोहरा मिलती नहीं है अब तक
ऐ पीर-ए-चर्ख़ सब ये बद-ज़ातियाँ हैं तेरी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तड़ावे के लिए है ख़्वान पोश महर-ओ-मह नादाँ
फ़रेब-ए-चर्ख़ मत खाना कहीं, ये ख़्वान ख़ाली है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
फ़िक्र-ए-तामीर में हूँ फिर भी मैं घर की ऐ चर्ख़
अब तलक तू ने ख़बर दी नहीं सैलाब के तईं
क़ाएम चाँदपुरी
शेर
मिरी 'आशिक़ी सही बे-असर तिरी दिलबरी ने भी क्या किया
वही मैं रहा वही बे-दिली वही रंग-ए-लैल-ओ-नहार है
ए. डी. अज़हर
शेर
फ़लक पे चाँद चमकता है दश्त में जैसे
यूँ राह में तिरी पायल हुई है मिस्ल-ए-चराग़