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शेर
ऐ फ़लक तुझ को क़सम है मिरी इस को न बुझा
कि ग़रीबों को चराग़-ए-शब-ए-तारीक है दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जुनूँ के शाह ने जब से लिया है क़िलअ'-ए-दिल को
ये मुल्क-ए-अक़्ल वीराँ हो गया किस किस ख़राबी से
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
शेर
कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में फिरता हूँ भटकता कब का
शब-ए-तारीक है और मिलती नहीं राह कहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बाम-ओ-दर की रौशनी फिर क्यूँ बुलाती है मुझे
मैं निकल आया था घर से इक शब-ए-तारीक में
अब्दुल अहद साज़
शेर
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
इब्न-ए-इंशा
शेर
मिरी 'आशिक़ी सही बे-असर तिरी दिलबरी ने भी क्या किया
वही मैं रहा वही बे-दिली वही रंग-ए-लैल-ओ-नहार है
ए. डी. अज़हर
शेर
सुना किस ने हाल मेरा कि जूँ अब्र वो न रोया
रखे है मगर ये क़िस्सा असर-ए-दुआ-ए-बाराँ
बन्द्र इब्न-ए-राक़िम
शेर
मस्जिद में तुझ भँवों की ऐ क़िबला-ए-दिल-ओ-जाँ
पलकें हैं मुक़तदी और पुतली इमाम गोया