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शेर
हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
ख़ुदा जाने तुम्हारा परतव-ए-रुख़्सार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
बे-साल-ओ-सिन ज़मानों में फैले हुए हैं हम
बे-रंग-ओ-नस्ल नाम में तू भी है मैं भी हूँ
अकबर हैदराबादी
शेर
क्या करूँ ख़िलअत ओ दस्तार की ख़्वाहिश कि मुझे
ज़ीस्त करने का सलीक़ा भी ज़ियाँ से आया
अब्बास रिज़वी
शेर
कई बार दौर-ए-कसाद में गिरे मेहर-ओ-माह के दाम भी
मगर एक क़ीमत-ए-जिंस-ए-दिल जो खरी रही तो खरी रही
अज़ीज़ क़ैसी
शेर
जुनूँ के शाह ने जब से लिया है क़िलअ'-ए-दिल को
ये मुल्क-ए-अक़्ल वीराँ हो गया किस किस ख़राबी से