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शेर
आँखें हैं मगर ख़्वाब से महरूम हैं 'मिदहत'
तस्वीर का रिश्ता नहीं रंगों से ज़रा भी
मिद्हत-उल-अख़्तर
शेर
कोई महकार है ख़ुश्बू की न रंगों की लकीर
एक सहरा हूँ कहीं से भी गुज़र जा मुझ में
मुसव्विर सब्ज़वारी
शेर
तितलियाँ रंगों का महशर हैं कभी सोचा न था
उन को छूने पर खुला वो राज़ जो खुलता न था!
आरिफ़ अब्दुल मतीन
शेर
अब की रुत में जब धरती को बरखा की महकार मिले
मेरे बदन की मिट्टी को भी रंगों में नहला देना