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शेर
हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म-ओ-दर्द है मरूँ क्यूँकर
क़दम उठाऊँ जो आगे कुशादा राह मिले
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म ने इस क़दर मुझ को रुलाया है
कि अब राहत की सूरत मुझ से पहचानी नहीं जाती
जगदीश सहाय सक्सेना
शेर
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
शेर
हिज्र में इक माह के आँसू हमारे गिर पड़े
आसमाँ टूटा शब-ए-फ़ुर्क़त सितारे गिर पड़े
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में
तारा टूटा कि मिरी आँख से आँसू टूटा