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शेर
गर शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ है तो आ इधर
है दिल की राह सीधी व का'बे की राह कज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
गुज़रने को तो गुज़रे जा रहे हैं राह-ए-हस्ती से
मगर है कारवाँ अपना न मीर-ए-कारवाँ अपना
सेहर इश्क़ाबादी
शेर
जादा-ए-राह-ए-मोहब्बत की दराज़ी मत पूछ
मंज़िल-ए-शौक़ का हर ज़र्रा बयाबाँ निकला
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
शेर
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
शेर
थे बयाबान-ए-मोहब्बत में जो गिर्यां आह हम
मंज़िल-ए-मक़्सूद को पहुँचे तरी की राह हम
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
कहाँ रह जाए थक कर रह-नवर्द-ए-ग़म ख़ुदा जाने
हज़ारों मंज़िलें हैं मंज़िल-ए-आराम आने तक