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शेर
खंडर में माह-ए-कामिल का सँवरना इस को कहते हैं
तुम उतरे दिल में जब दिल को बयाबाँ कर दिया हम ने
इज्तिबा रिज़वी
शेर
यही महर ओ माह ओ अंजुम को गिला है मुझ से या-रब
कि उन्हें भी चैन मिलता जो मुझे क़रार होता
अदीब सहारनपुरी
शेर
फ़रेब-ए-माह-ओ-अंजुम से निकल जाएँ तो अच्छा है
ज़रा सूरज ने करवट ली ये तारे डूब जाएँगे
अली अकबर अब्बास
शेर
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
ख़लल-पज़ीर हुआ रब्त-ए-मेहर-ओ-माह में वक़्त
बता ये तुझ से जुदाई का वक़्त है कि नहीं