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शेर
ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
रिश्ता-ए-तस्बीह और सर-रिश्ता-ए-ज़ुन्नार बंद
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
जो शैख़ है चाहे है सर-ए-रिश्ता-ए-इस्लाम
क़ाएम रहे तस्बीह का इक तार न टूटे
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
क्या खाएँ हम वफ़ा में अब ईमान की क़सम
जब तार-ए-सुब्हा रिश्ता-ए-ज़ुन्नार हो चुका
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
वारस्ता कर दिया जिसे उल्फ़त ने बस वो शख़्स
कब दाम-कुफ्र ओ रिश्ता-ए-इस्लाम में फँसा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
किया है चाक दिल तेग़-ए-तग़ाफ़ुल सीं तुझ अँखियों नीं
निगह के रिश्ता ओ सोज़न सूँ पलकाँ के रफ़ू कीजे
आबरू शाह मुबारक
शेर
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
अपने दिल को सख़्त कर के रिश्ता-ए-इंकार तोड़