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शेर
हुस्न ऐसा कि ज़माने में नहीं जिस की मिसाल
और जमाल ऐसा कि ढूँडा करे हर ख़्वाब-ओ-ख़याल
अनवर जमाल अनवर
शेर
सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी
मुझे डर है न तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
शेर
कहो हुस्न-ए-जमाल-यार से ये इतनी सज-धज क्यों
भरी बरसात में पौदों को पानी कौन देता है
अज़हर बख़्श अज़हर
शेर
ऐ जमाल-ए-बे-बदल लेकिन अदा में बे-रुख़ी
हो गईं सदियाँ कि चश्म-ए-तिश्ना तेरी मुंतज़िर