aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ruko"
पीछे पीछे मिरे चलने से रुको मत साहिबकोई पूछेगा तो कहियो ये है नौकर मेरा
रुको तो यूँ कि ठहर जाए गर्दिश-ए-दौराँचलो तो ऐसे कि सारे जहाँ को साथ लिए
किस तरह उजड़े सुलगती हुई यादों के दिएहमदमो दिल के क़रीब आओ रुको और सुनो
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक केअब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरहज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुलमुझे आज़मा रहा है कोई रुख़ बदल बदल कर
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों मेंरुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
लिपट भी जा न रुक 'अकबर' ग़ज़ब की ब्यूटी हैनहीं नहीं पे न जा ये हया की ड्यूटी है
जाने जो करे क़ौल न पूरा करे हर काम अधूरा यही दिन-रात तसव्वुर है कि नाहक़उसे चाहा जो न आए न बुलाए न कभी पास बिठाए न रुख़-ए-साफ़ दिखाए न कोई
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैंउधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है
दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिलजिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह काचंदा वसूल होता है साहब दबाव से
जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जातीतो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती
रास्ते हैं खुले हुए सारेफिर भी ये ज़िंदगी रुकी हुई है
सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलतीचलो तुम उधर को हवा हो जिधर की
क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तोतन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो
जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसेजान बाक़ी है मगर साँस रुकी हो जैसे
हज़ार रुख़ तिरे मिलने के हैं न मिलने मेंकिसे फ़िराक़ कहूँ और किसे विसाल कहूँ
आँखें ख़ुदा ने दी हैं तो देखेंगे हुस्न-ए-यारकब तक नक़ाब रुख़ से उठाई न जाएगी
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