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शेर
उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त
ख़ूब-रू जैसे लगाते हैं हिना दस्त-ब-दस्त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
उठा जो मीना-ब-दस्त साक़ी रही न कुछ ताब-ए-ज़ब्त बाक़ी
तमाम मय-कश पुकार उठ्ठे यहाँ से पहले यहाँ से पहले
शकील बदायूनी
शेर
ख़याल-ए-नाफ़ में ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध दीं मेरी
शनावर किस तरह गिर्दाब से बे-दस्त-ओ-पा निकले
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
शेर
बे-समर पेड़ों को चूमेंगे सबा के सब्ज़ लब
देख लेना ये ख़िज़ाँ बे-दस्त-ओ-पा रह जाएगी
अमजद इस्लाम अमजद
शेर
हम उस कूचे में उठने के लिए बैठे हैं मुद्दत से
मगर कुछ कुछ सहारा है अभी बे-दस्त-ओ-पाई का
क़लक़ मेरठी
शेर
ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी
अगर सब जम'अ करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
शेर
तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ
शायद आ जाए कोई आबला-पा मेरे बाद