aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "saagar"
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँछूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़रआज वो रौनक़-ए-बाज़ार नज़र आते हैं
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जाजा चुकी है बहार चुप हो जा
जिस अहद में लुट जाए फ़क़ीरों की कमाईउस अहद के सुल्तान से कुछ भूल हुई है
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम हैरहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मिरे आगे
कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले होक्या आग लगाओगे बर्फ़ीली चटानों में
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी हैजाने किस जुर्म की पाई है सज़ा याद नहीं
मुद्दत हुई है बिछड़े हुए अपने-आप सेदेखा जो आज तुम को तो हम याद आ गए
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'ज़िंदगी की कोई कड़ी होगी
जान जाने को है और रक़्स में परवाना हैकितना रंगीन मोहब्बत तिरा अफ़्साना है
लोग कहते हैं रात बीत चुकीमुझ को समझाओ! मैं शराबी हूँ
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिएतुम से कहीं मिला हूँ मुझे याद कीजिए
मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूरमैं आज अपनी ज़ात से घबरा के पी गया
तुम गए रौनक़-ए-बहार गईतुम न जाओ बहार के दिन हैं
आम तेरी ये ख़ुश-नसीबी हैवर्ना लंगड़ों पे कौन मरता है
जिस बज़्म में साग़र हो न सहबा हो न ख़ुम होरिंदों को तसल्ली है कि उस बज़्म में तुम हो
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहींमेरे नग़्मात को अंदाज़-ए-नवा याद नहीं
काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्याफूलों की वारदात से घबरा के पी गया
तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगाताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा
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