aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sadaa-e-bar-haq"
ठुकरा के चले जाना है बर-हक़ तुम्हें लेकिनबस रखना ख़याल इतना जहाँ को न ख़बर हो
मौत बर-हक़ है जब आ जाए हमें क्या लेकिनज़िंदगी हम तिरी रफ़्तार से डर जाते हैं
इन रोज़ों लुत्फ़-ए-हुस्न है आओ तो बात हैदो दिन की चाँदनी है फिर अँधियारी रात है
मौत बर-हक़ है तो फिर मौत से डरना कैसाएक हिजरत ही तो है नक़्ल-ए-मकानी ही तो है
तन्हाई-ए-फ़िराक़ में उम्मीद बार-हागुम हो गई सुकूत के हंगामा-ज़ार में
सदा-ए-दर्द लगाता हूँ उस गली में जहाँशगुफ़्त-ए-गुल भी समा'अत पे बार होती है
बार-हा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हमसूरत-ए-मौज उठे मिस्ल-ए-तलातुम आए
इलाही वाक़ई इतना ही बद है फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूरपर इस मज़े को समझता जो तू बशर होता
सीना-ए-आदमी की बात है औरयूँ तो छलनी है सीना-ए-नय भी
इक़रार-ए-मोहब्बत तो बड़ी बात है लेकिनइंकार-ए-मोहब्बत की अदा और ही कुछ है
बदन पर बार है फूलों का सायामिरा महबूब ऐसा नाज़नीं है
अजीब बात है कीचड़ में लहलहाए कँवलफटे पुराने से जिस्मों पे सज के रेशम आए
उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है 'ग़ालिब'हम भी गए वाँ और तिरी तक़दीर को रो आए
तुम में जो बात है वो बात नहीं आई हैक्या ये तस्वीर किसी और से खिंचवाई है
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहना हैपर हमें तेरे ही कूचे में पड़ा रहना है
ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात हैये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आएबार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए
मैं भी हैरान हूँ ऐ 'दाग़' कि ये बात है क्यावादा वो करते हैं आता है तबस्सुम मुझ को
ये सदा आ रही है क़ब्रों से'इश्क़ क़ातिल है हम ग़रीबों का
बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार मेंफ़रमाँ-रवा-ए-किश्वर-ए-हिन्दुस्तान है
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