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शेर
इमारत दैर ओ मस्जिद की बनी है ईंट ओ पत्थर से
दिल-ए-वीराना की किस चीज़ से तामीर होती है
रज़ा अज़ीमाबादी
शेर
बाँध के सफ़ हों सब खड़े तेग़ के साथ सर झुके
आज तो क़त्ल-गाह में धूम से हो नमाज़-ए-इश्क़
सहर भोपाली
शेर
न जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं
कि हम परिंदे मक़ामात-ए-गुम-शुदा के हैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
शेर
दूँगा जवाब मैं भी बड़ी शद्द-ओ-मद के साथ
लिक्खा है उस ने मुझ को बड़े कर्र-ओ-फ़र्र से ख़त
नूह नारवी
शेर
मग़रिब में उस को जंग है क्या जाने किस के साथ
सूरज चला है बाँध के तेग़ ओ सिपर कहाँ