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शेर
'शफ़क़' का रंग कितने वालेहाना-पन से बिखरा है
ज़मीं ओ आसमाँ ने मिल के उनवान-ए-सहर लिक्खा
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
शेर
मैं भी इस सफ़्हा-ए-हस्ती पे उभर सकता हूँ
रंग तो तुम मिरी तस्वीर में भर कर देखो
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
शेर
गो कि हम सफ़्हा-ए-हस्ती पे थे एक हर्फ़-ए-ग़लत
लेकिन उठ्ठे भी तो इक नक़्श बिठा कर उठे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
शारिक़ ईरायानी
शेर
ख़याल उस सफ़-ए-मिज़्गाँ का दिल में आएगा
हमारे मुल्क में भरती सिपाह की होगी
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
सफ़-ए-मुनाफ़िक़ाँ में फिर वो जा मिला तो क्या अजब
हुई थी सुल्ह भी ख़मोश इख़्तिलाफ़ की तरह
मुसव्विर सब्ज़वारी
शेर
समझ में साफ़ आ जाए फ़साहत इस को कहते हैं
असर हो सुनने वाले पर बलाग़त इस को कहते हैं
अकबर इलाहाबादी
शेर
सर-ब-कफ़ हिन्द के जाँ-बाज़-ए-वतन लड़ते हैं
तेग़-ए-नौ ले सफ़-ए-दुश्मन में घुसे पड़ते हैं