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शेर
पहचान गया सैलाब है उस के सीने में अरमानों का
देखा जो सफ़ीने को मेरे जी छूट गया तूफ़ानों का
जोश मलीहाबादी
शेर
वक़्त हाकिम है किसी रोज़ दिला ही देगा
दिल के सैलाब-ज़दा शहर पे क़ब्ज़ा मुझ को