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शेर
कहो हुस्न-ए-जमाल-यार से ये इतनी सज-धज क्यों
भरी बरसात में पौदों को पानी कौन देता है
अज़हर बख़्श अज़हर
शेर
मिल गया था बाग़ में माशूक़ इक नक-दार सा
रंग ओ रू में फूल की मानिंद सज में ख़ार सा
आबरू शाह मुबारक
शेर
मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
साथ क़श्क़े के है ज़ुन्नार-ए-बरहमन कैसा
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ
क़द्द-ए-आदम हैं लगे आइने दीवारों में