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शेर
सरक कर आ गईं ज़ुल्फ़ें जो इन मख़मूर आँखों तक
मैं ये समझा कि मय-ख़ाने पे बदली छाई जाती है
नुशूर वाहिदी
शेर
किसी की बज़्म के हालात ने समझा दिया मुझ को
कि जब साक़ी नहीं अपना तो मय अपनी न जाम अपना