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शेर
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
अल्लामा इक़बाल
शेर
सरक कर आ गईं ज़ुल्फ़ें जो इन मख़मूर आँखों तक
मैं ये समझा कि मय-ख़ाने पे बदली छाई जाती है
नुशूर वाहिदी
शेर
ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले