aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "satvat"
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैंमैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारामैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा
जिसे अंजाम तुम समझती होइब्तिदा है किसी कहानी की
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में
मिट्टी पे नुमूदार हैं पानी के ज़ख़ीरेइन में कोई औरत से ज़ियादा नहीं गहरा
सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँबच निकलने के ब'अद क्या होगा
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख करइक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी
दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैंमिट्टी की सुंदरता देखो और मुझे देखो
मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते परइक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम मेंमुझे सब्र ने ये समर दिया मुझे ज़ब्त ने ये हुनर दिया
'सरवत' तुम अपने लोगों से यूँ मिलते होजैसे उन लोगों से मिलना फिर नहीं होगा
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ीमिरे साथ मेरा बदन भी तो है
कौन तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझेये भरा शहर भी तन्हा नज़र आता है मुझे
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजेकाम इस पल है तिरे जिस्म की उर्यानी से
अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुईमेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म हैऔर फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है
कहा मैं ने कितना है गुल का सबातकली ने ये सुन कर तबस्सुम किया
मैं आग देखता था आग से जुदा कर केबला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तककितनी मेहराबें पड़ती हैं कितने दर आते हैं
सावन एक महीने 'क़ैसर' आँसू जीवन भरइन आँखों के आगे बादल बे-औक़ात लगे
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