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शेर
हम सुख़न-फ़हम हैं 'ग़ालिब' के तरफ़-दार नहीं
देखें इस सेहरे से कह दे कोई बढ़ कर सेहरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
कलकत्ता से भी कीजिए हासिल कोई तो इल्म
सीखेंगे सेहर-ए-सामरी हम चश्म-ए-यार से
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
शेर
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
शेर
हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं
और तो सब कुछ था लेकिन रस्म-ए-दिलदारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
पहली सी लज़्ज़तें नहीं अब दर्द-ए-इश्क़ में
क्यूँ दिल को मैं ने ज़ुल्म का ख़ूगर बना दिया
सेहर इश्क़ाबादी
शेर
हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली
तुम ऐसे ख़ूबसूरत हो के इतने बद-ज़बाँ क्यूँ हो
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
फ़ुसूँ है सेहर है जादू है क्या है आँखों में