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शेर
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
न जाने कितनी शमएँ गुल हुईं कितने बुझे तारे
तब इक ख़ुर्शीद इतराता हुआ बाला-ए-बाम आया
आनंद नारायण मुल्ला
शेर
इश्क़ की दुनिया में क्या क्या हम को सौग़ातें मिलीं
सूनी सुब्हें रोती शामें जागती रातें मिलीं
करम हैदराबादी
शेर
तह-ए-आरिज़ जो फ़रोज़ाँ हैं हज़ारों शमएँ
लुत्फ़-ए-इक़रार है या शोख़ी-ए-इंकार का रंग
अली सरदार जाफ़री
शेर
शमएँ अफ़्सुर्दा जहाँ फूल हैं पज़मुर्दा जहाँ
दिल को उस गोर-ए-ग़रीबाँ में पुकारा होता
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
वही रुस्वाई का मेरी सबब आख़िर बने मौला
वही जो लोग कल शामें सुहानी करने वाले थे