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शेर
शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से
अभी सो रहने दो कुछ रात गुज़रे तो जगा लेना
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
घटती है शब-ए-वस्ल तो कहता हूँ मैं या-रब
क्या तुझ को बनानी थी यही रात ज़रा सी