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शेर
टपकते हैं शब-ए-ग़म दिल के टुकड़े दीदा-ए-तर से
सहर को कैसे कैसे फूल चुनता हूँ मैं बिस्तर से
जलील मानिकपूरी
शेर
धनक की तरह निखरता है शब को ख़्वाबों में
वही जो दिन को मिरी चश्म-ए-तर में रहता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
'वहशत' सुख़न ओ लुत्फ़-ए-सुख़न और ही शय है
दीवान में यारों के तो अशआर बहुत हैं