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शेर
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
अल्लामा इक़बाल
शेर
उस के बा'द अगली क़यामत क्या है किस को होश है
ज़ख़्म सहलाता था और अब दाग़ दिखलाता हूँ मैं
शाहीन अब्बास
शेर
ये दिन और रात किस जानिब उड़े जाते हैं सदियों से
कहीं रुकते तो मैं भी शामिल-ए-पर्वाज़ हो सकता
शाहीन अब्बास
शेर
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं