aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shahzaade"
शाहज़ादे हों वली हों कि सुख़न-दान-ए-शहरजब वो दिखता है कोई और कहाँ दिखता है
इतनी पी जाए कि मिट जाए मैं और तू की तमीज़यानी ये होश की दीवार गिरा दी जाए
छोड़ने मैं नहीं जाता उसे दरवाज़े तकलौट आता हूँ कि अब कौन उसे जाता देखे
गुज़रने ही न दी वो रात मैं नेघड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने
ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों कोइतने ख़ूब-सूरत लब झूट कैसे बोलेंगे
सब की तरह तू ने भी मिरे ऐब निकालेतू ने भी ख़ुदाया मिरी निय्यत नहीं देखी
हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थींये हादसा है कि हम तेरे पास आ पहुँचे
हौसला है तो सफ़ीनों के अलम लहराओबहते दरिया तो चलेंगे इसी रफ़्तार के साथ
फिर यूँ हुआ कि मुझ से वो यूँही बिछड़ गयाफिर यूँ हुआ कि ज़ीस्त के दिन यूँही कट गए
हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएबये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँदिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है
आँख रखते हो तो उस आँख की तहरीर पढ़ोमुँह से इक़रार न करना तो है आदत उस की
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आयातब उस को पहली मुलाक़ात का ख़याल आया
नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँजाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए
हवा की ज़द में पत्ते की तरह थावो इक ज़ख़्मी परिंदे की तरह था
शौक़-ए-सफ़र बे-सबब और सफ़र बे-तलबउस की तरफ़ चल दिए जिस ने पुकारा न था
बाप बोझ ढोता था क्या जहेज़ दे पाताइस लिए वो शहज़ादी आज तक कुँवारी है
अब तो इंसान की अज़्मत भी कोई चीज़ नहींलोग पत्थर को ख़ुदा मान लिया करते थे
मैं तिरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बतादेख कर मुझ को तिरे ज़ेहन में आता क्या है
वाक़िआ कुछ भी हो सच कहने में रुस्वाई हैक्यूँ न ख़ामोश रहूँ अहल-ए-नज़र कहलाऊँ
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